बुधवार, २६ मे, २०२१

आजी म्हणजे घट्ट साय...

"उठला  का  वाघोबा ?"  म्हणे  आजी  नेहमी 

असू  जरी  भित्रे,  लहानपणी  आम्ही 


मऊ  गोधडीत  आजीच्या,  झोप  मस्त  येई 

फॅन्सी  चादरी  बाजारात , ऊब  त्यात  नाही 


पोट  भरता  तुडुंब , डोळे  हळूच  मिटू  लागती 

खाऊ  शेकडो  आजीचे , चिऊ -काऊ  घास  देती 


ताजा  गोळा  लोण्याचा,  जेंव्हा  पडे  हातावर 

हात  पुसायला  साडी  तिची , अलगद  खाऊन  झाल्यावर  


चोळून  देई  अंग  जेंव्हा,  करे  चंपी  तेलाची 

माझ्या  बरोबर  आंघोळ  होई,  जंगलातल्या  प्राण्यांची 


गोष्टींना  तर  नसे  सुमार , राजा -राणी -मंत्री  हुशार 

होईन  मग  मी  लाकूडतोड्या , वनदेवी  ती  गोंडस  फार 


हमखास  जागा  लपायची  ती , आई  जेंव्हा  ओरडे 

हळूच  देऊन  खाऊ  हवासा , समजावी  ती  थोडे 


"अल्लामंतर  कोल्हामंतर"  बाऊ  जाई  पळून 

सुरकुतलेल्या  हातांमध्ये , जादू  होती  भरभरून 


"शुभंकरोती  कल्याणम "  दिवेलागणीला  न  चुकता 

वर्ग  हवेत  कशाला  जर , संस्कार  होती  येता  जाता


आजी  म्हणजे  दुसरी  माय , आजी  म्हणजे  घट्ट  साय 

आजी  म्हणजे  सखा  सोबती , अखंड  तेवणारी  शांत  ज्योती 


-अंकुश 

बुधवार, १९ मे, २०२१

सांग ना बाबा...

 सांग  ना  बाबा , किस्सा  लहानपणीचा  तुमच्या  

कशी  करायचा  गम्मत  अन  खोड्या  कुणाकुणाच्या 


कसे  होते  टीचर , कशी  होती  शाळा ,

किती  होते  क्लास , कशा  होत्या  वेळा 


शाळा  होती  साधी-सुधी , कडक  शिस्तीचे  शिक्षक 

क्लास  होते  मोजके , सोपे  वेळापत्रक 


तुटके  बेंच , फुटक्या  खिडक्या , किरकिरणारा  पंखा

काळा फळा, खडूचा  धुरळा , शेजारी  मात्र  सखा 


कधी  पट्टी , कधी  डस्टर , कधी  नुसता  हाताचा  फटका 

घरचे  म्हणती  बरे  झाले  "तूच  चुकला  असशील  लेका "


एकच  कंपास , एकच  बॅट वर्षानुवर्षे  आम्हास  चाले 

वाढदिवस -दिवाळी  नवीन  कपडे , एवढे  कौतुक  खूप  झाले 


पोळी -भाजी  रोज  डब्यात , प्यायला  नळाचे  पाणी 

खास  पदार्थ  फक्त  रविवारी , हॉटेल  म्हणजे  पर्वणी 


मोबाईल शिवाय  सगळे  जमती  एकच  वेळी  मैदानावर 

रिमोट  साठी  भांडण  नाही , एकच  चॅनेल  TV वर 


हजारो  किस्से  बालपणीचे , किती  आठवायचे  किती  सांगायचे 

काही  कळतील  सहज  तुला , काही  कदाचित  नाही  उमगायचे 


सोपे  सरळ  होते  सारे , साधी  होती  रहाणी 

पाचा  उत्तरी  सुफळ  झाली  साठा  उत्तराची  कहाणी 


-अंकुश 

माधुरी

 परवा चक्क स्वप्नात माधुरी आली,  गोड लाजत हसत “साजन”च म्हणाली  पहाटेचं स्वप्न, मन शहारून गेलं खसखसून साबणाने, अंग धुवून काढलं नविन शर्टची घड...